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|| रथानी कैःसर् अन्वधावन् ततःनीद्रं षटुय पहबणारव्यगिरिंआरुहती ततमाः गिरी डीनीज्ाखातेगिरिकारिःसेबेश्यद || ^
| दह् ततःतौ ११ योजनोरंगान् दद्यमानाद् भिरितदात् अधःधुबिनिपेततुः एवरिवुगाअरष्यवबाणी गी हर कोवुनःआयानौसो | =. `
` :. “` ||| पिप्ागधः नीद्ग्धाविति मरखात्वबङगृहीस्या मागधान् यथी हैराजव् श्रीमाच् रेवतः बद्यणावीदितः सन् स्वसुता || ` ||| पादादितिनपसस्कधेरक्तम् है भारत भगवान् श्रीरष्णोपिस्वयमरेवं यपक्षायानु शाल्वादीन् पप्य त्रीष्यकसुतारुभ्ि-|||
णीगक्षसबिधिनांरपयेमे इतिश्ुतम् ` रजोवाच दै शक्वीकृष्णः शोल्वादीनजित्वाकन्या यथा भा | ` . ||| छाति ओश्फकडबाच . रैरजन् बिदसाधिषतिःत्रीष्पमङनाषराजा एक | . ६ ||| रुक्मी १ स्मर थः र्क्व बाहुः ३ सक्शङशः ४ सुकापाडी " एवास्वसारुश्षिणीश्वीकत्लज ।॥॥ प्त ` ` ||| ष्णोपिस्वयोत्यातो उदोदुंमनोरथे तरुभ्विणीसष्णाय दातु च्छः बं धून निवार्यरष्णारिट् रुक्यायैदंवरं अमन्यतसातन
||| खादुर्मनासतीङंचनसंदिजहव्णाोयपारिणीत् सधिष. हरक एयशरपैः वरवेरितंः सचसुबणौसनेश्थितं रुषं उ
॥| रततः रुष्णःबाह्मणदृखाआसनादबरुलतवतंउपेश्य संपूज्य भुक्त बं बिश्रोतंतंउपगस्य पाणिनापारदीसबर्दयन्सक् अ ||
.. ` ||| पृच्छन् हैदिजसंतुषटमनसंः मे थमैःअतिहच्छेणनवतेतेरडित् बाह्मणः संतुषश्वेतूर्तदिथमःनस्यशमभुककवति असं ||
` ||||उशेबिषश्वेत् लोकातलो कातरंपयदति अदला भसु शन् शोनाद्दविजान् शिरसानपस्ये रैडिज सजनः ब |
४ (-0.041165 91101 (<.5.78/1/181 110 ०५ 1 [2151161 | 1081 \/ [21111260 0 66801 अ 1 3 । ह
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भारः बोणौःअश्वास्अषभिःसूते दाम्योधिभिःष्वजेषिव्याधसबरं क्ीभम्यत् पसुशदायपेवभिः शरे रष्णंमिष्याधतद्पिधनुररूण 9 । चिच्छेद तदारूष्णेपतिपरिवभूरुखडशक्तितीमरास्विक्षेप गाच्रूष्णः चिच्छेद तररक्गीरथारबटुयनिषासयाः | || हषण अधावत् पसरूषणः बाणेनसडुङिखातहं अभि आददे तक रूभ्थिणीभीतासती भरःपदयोः पपिलाकरुणंउषाच हे भगव ` || |सूमेश्नातरहसुनारभि एवंनयागरीतवरणः हरि वधातूमिरतः सम् तं बस्मरेणयस्यावपनं रुलाश्य पयत् तततःरमरुष्यांति ||||केआगयतथाभूतरुभ्ि्ण रछावङतेविषुयरूषणंअववीत् 'हैरुणव यार भसाधरूतय् साधि अस्पाम्भातुभैस्य| || चितयोगार्येथाः यतःसुखटःखदः अन्थोनास्ि वि नता सपर हन्यात् अयंक्षनिथाणोधपेएव हैदेविरेरिनो भदाएकप ||| वततस्मिन् अर्चियाङ्पःदैहः आदान संसारयति जन्सादिरिकारअपिदेह् स्येवनालनः अतः अञ्नानजं शौकंतल नञा | सस्वस्थाभदः -शरीशक्डवातच एदंरमेणबौधिनारुस्मिणीसेदयत्कापनःसमाहितं अकरोत् पतमरक्यीशसुभिःउस्स् 2 छः सरूषिस्पशरणंस्परम् पतिज्ञणारनायमनैबस्थिसास्वनिवासाय भीजकरनामयुरं के भगवररम्गिणीदुरं भनीयविः ||| धिचत् उपयेमे मरायहुुयीगहैगरैऽसवःआसीन् तदन सानाय॑श्वसुदिताः सयः पारिबर उर्दू. एवंसाहारकातीरणौःपूर्णु : || || ारिभिश्ववभौतराङ्ररजयादयःभि थःसभेय युयुदिरे खरड्यिण्याररणंश्चुलाराजानोरजकन्याश्चरिस्थिताबभूदुः तः ` ||| तैःरुञ्िण्यायुक्तथीरूणेरल्ापोरणोहषीऽ भत् = -रतिदशमैनरुप्पेदा शस मः ५४ आशकडषाव बाङ्रूदमन्युना| || द्यः कामःभूयः रेह पायेवादेवं पाप सएदरस्पिण्याप्रयुस्बरतिमसिद्धः जातः वराशवरःतबाङकंभस शडुभितिज्ञालाज|
दिरीतरासहरैपक्िष्यगद्ययौ वमस्यःगिरितिवात् समीनः अन्यैःसदकैषतैः धतः पंरबरायडपायन ददुः वतसर ते ||| भ~ समरषिनिवसयः ओ २।१ननिरगतानि दशिनानियस्यनं द
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परस्येमहानसंनी ला शसेण सडित्नः नय तडुदरैगारंरघामायालन्यपेदयन् पनभारदः त्ागस्यबांलस्यञससिमस्योदर 0. शनंचनस्थे अकथयत् साचकामपल्लीरतिनास्मीखवपदयुःदहेसतिंषती सी शेबरेणस्पीरनसाधनेनियुक्तासतीशिधामं || || बुख्नास्वेहके सशिशुःखत्यकाठेन पाषयोवनः सनूनारीणा मोहेजनयामास ततःसातंनरणोक सुद्र सौ रैः भावैःउपतस्थै
तौमदुनः आह रै मानः खं मादभारय्ताकाभिनीदवतेसे ` रमिर्वाच . संहूणसुतः शबरेणअनानीतः अतः संकामोसि ध ||| अहेतदपलीरतिःएषःशंबरःअनि्दशंलाडवासिषीपाक्षिपत् तत्रला मस्यः अयसीन् तदुदरान्रद्वेषासोऽसि अतःदमश्ुं| | ` ध
जहि तवमाताङुरदीब शोचति श्रीशक्उया रैरजन् एवंपभाष्यरतिःस्ंमायाविनाशिनी भियां भरयुश्ायददी सरशंबर
' ||| मरप्यआक्षिपरसन्युद्ायसमच्छ्यत् तराशबरःगदापाणिःसमूरृहानिगेखयगदयापयुम आरि्यनारे अकरोत् ततः आ |. . ` ५ || | पितोगदांअपास्यतेगदयाअगाइ यत् सचमायाआभरिखनभसिस्थितः सन् अस्रमयं व्षेमुयुते तनःपरयुम्तसामिकीनिचा- ||| | पायुक्तततः दैखःगोप्यङ गा धपे शाोरग राक्षसीः मायाःपरायुंक्तताःसगः कण्णिःअना शयत् ततःखडङगृहीवाशबरव्यशिर||
. || अदृरत् तदादेमैः एथेःआकीर्यमाणः पद्यु म्तः तयास्मियारिहायसासुंरतीतः ततःन्नियः पचतु पजं पीतो बरेरुषिराननंङष्णं
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|| | तत्रडपतापादयोनभरतीतिदवनःश्चलाभक्ूरं आनाय्यहच्णः तंसंपूज्यस्मयमानः उवाच है अद्ूर शतधन्वनास्यमर्तक्यणिः || सयिन्यस्तःस.भस्याभिःपूमेयरिरितिः शि सप्रानितःअनपत्यवान् यय॑सलयायाःसुताःगृण्डीयुः नथापि समणिः खयि || || परुरमःपणिविषयेमां परतिनबिश्डसति अतौमणिदशथिलाबंधूना शंपिङुर एदं भगवतासासभि,उक्त'अङ्करः - | || दरी ततःरुष्णःतं मणिं ज्ञातिभ्यो दशपिखाअष्रूरायदरी यएतत्भ्ी रष्णस्यआरव्यानं पटति शृणोतिवासःशतिंभराभोति ४२ |||. ` ||| ` इतिदशपेसपपचाशस्तवः ५० ` श्री शकडवाब. ईैरजवएकदारष्णःसायव्यादिभिः सह पाडवान् द इद्रपस्थगत्| | ||ततःपाथौः तं हष्णे दश्वाउधायं प ्ज्यनुयुसंरलतासुद पपु ततः कष्ण भीष्पयुधिषिरै वतिना असनं भ्यं
॥ ओ-२ शतयोजनं माचगापिलाततःपरगतुम
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| वैरितःसन् आसनेऽपभिषेश ततः गेषदीर्तननाम तथैव सालयिरपिनै प जि तसन् अन्यासेऽपिष्टःततःहष्ाःथानलाुःशं पष्वान् तशापृथाताम् डशर् स्मरती सतीतं भह हैरुणलयायराभ्ूरःपरेषितः तदेवनःङशरंअभ्त् = उधिधरउवाः हे
` ||| मासान् भवसत् एरदाअसंगःर्णेनसहरथं भारखधतुगरीलामिहर उन परावित तमभेष्यानव्याधंसृङर महिष || || दासूशरः अविध्यत् ततःवयातानयुधिषिरायनिन्युः अनस्त तृभितःसन् यसुना भगात् त ं
कोन भसन ा्यपमेकनयसंकाभनङतःमासरििदीरपमि अहंता तिपि मन्यै अतसर्वकथय ¦ कारि दुवाच . देपार्थभहं सूयं सृतादेष्णुपति इच्छन सनानपः अकरवम् श अन्येपतिनरणेसषु|| || इद् पवष्यनाम् अहंकारिदयावत्िष्दीनंसयत् तारत अयसुनातीर एववसापि शयामा नता वा|| ` . . || यतथैवअवर्तसःरूषणाःनार थं भरेष्यधर्मराजंरुपागमन् ततप रिज्ञापितःरष्णःविष्वकम णातषानगर कर ।यलातव्|| ` ||| क्सनसन् अमयेसोडवंबनेयतं भसैनस्यसारथिः आंस पतः दशीऽग्निःभसनायधवुः व सौ ५ उपिषठिण ५. ~ 1 | चअदान् अन्ैमोवितःमयःअ्ुनायस भाभदान् यस्यायौ भनस्यजउस्थल्यौः दषे कमःआसीद् ततःयुधिषिणभवु | ^ ^| ्ानरुषणःसायक्पसुखेरेतःसन शरकोएयसुपुहत कारिदी उपयेमे ततः आावतयी विदातु विदास्वयपरेरुष्ण सक्ता स भिनी
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८ || यपेथामुततरुूष्णः परमितरं जञ पवनां सतो भंसडटनयान् अथर सत्यःनमजिन्नामरानाभसीन्गस्यसवयनामक || ` . ||| याभस तोरलानम्यपगोरान् अनिता गौडंनशकुःपवं पतीन षलाणःसेनयासहरीसत्य परंजगाम ततभविरीम्यगीतः|| , `
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ततस्त र धेनअध्यवासयत् बहःरगधंआधायतचगतः सनस्वीभिः सहमदिर पीततः ।
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ध | बःभठकडाथंययुनांआजु हाय पत निजंवाव्यं अनाह्य अनागतां नां हइलाथेणभरष्य आह् मः |
1 क्हसयेणलां शनथानेष्योभ्ि तनम्ययुनाभीतासतीनलाते आह हैरामतेपशिक्रिमंनजाने अतःहैभक्तवसरमां मोकुभरैसि ए |||
“ ` ||| याचन 1 तदारक्ीनस्मैतीरोबरेभूषणानिमालाचददी पतोरमःतैःख
` “ ` |||सेरनःसन्शशे अद्यापिययुनाबरस्यवी्यसूचयती वहश्यते एवंबलेरमतःगमस्यस्ीनिशाःएकनिशंषयाता" ६ ३ ||| : ` ` ||| तिदशमेपंचषशितमः + आशरवउवाच रैरजन्रमेव्रजंगनेसतिपोड्कःअहंवासदेवरनिदूतंरष्णायभादिणोच लस् ||
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|| हैमूदमबिद्धानिलयिपक्ष्स्यामि हैअज्ञयुदहतःलककगुधवरेरनःसय् नां शरणं भ ` , ||| रिष्यसि ततदटूतःनंआकषेपेस्वाभिने सर्वं भरथयत् छुणणोपिरथं आस्थाय का शीजगाम तदापौड कोपितदचोगेजालाअ शौ रिणी्य ` . +| |सृदुक्तसन्एरानूनिश्रकाम तस्यष्षनोरक्षकःकाशीपनिरपितिखकिः अक्षोहिणीभिःअन्वयान् तराहरिः `.“ ||| शोदकं रष्वास तदाअस्यभूज्नगदापरिषशक्तयिपा सतोमरासिपरिशबाणेःरष्णं भराहरद् शष्णरतपौडककाशिराजयोः |||वुषिधबरेगससिचकेषुभि क गदासिचक्रेषुभिःअरेयतु ततःोड्कंआः हैषोड्कटूत वास्येन भवाम् यत् मां आह नानिभस्माणिरस्पजभ्रि षि `. ||| खयाभूृषाभरतमेभक्िधानं याजयिष्ये रचि अहंयदियुदधनेच्छभि तहिंशरणं बजामि इत्िभि सा बाणे पीड पिर
क च + 4 | ~ ङ + म < ~ - न ` ` ` +, (©6-0.€नफा1@5)/ 9711 1९..रिाीतर । ।0्ावा1 60४ ल (णाता ४(वावाव्छ. 0001260. 0/ च्जवापती1 = , , 5:
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निहयपिवृहंनारंयास्याम्यपर्चिपिपितुः इनिदुद्यानिश्रियसोपाध्यायःसुदक्षिणःशिं पूजयामास ततशिवप्रीतःसननस्मै
|| || वरंदणीष्येसुक्तवार् सपितर वधोपायं राशिबःआह हेसुदक्षिणसं बाह्मणैःसह आभिचारषिधनेनदक्षिणाभियं
क ||| जसः अमिःअअल्लण्येपयोजितश्वे्तवसकत्येसाधयिष्यति इत्यारिष्ः सुदक्षिणः तथाचक्रेनतःकुंडात्गूततिमार् निस
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ननःततःसोऽनिः अतिभीषणःसन्ह्यरकीययी तविरोस्यसर्वेहारफौीकसः तनर.ततः से प्यातुराःसंतः भगवतं भहुरैप
लोकेशपुरं षदहतःबन्दैआादिआदि ततो भगवानुस्वानो भयं राप्रहस्यमाभैप अहूरक्षिष्याभिइ्याहततषणंःतांरैवीङया || | जञावातन्याशार्थचक्रंभादिशम् पसमूयेकोिपरतिमेसुदशेनंरूयामिअग्डयत् ततःअस्मोजसाषनिहतारूयाङ्शौगलाससि |
कजनसःदक्षिणेसमदहत् तदु परषिषफदशेनं सवो शरण्या भूयःरष्णस्यपाभ्व॑रपातिषठत् यःएनेउत्तमभ्लोकविक्रमंश्रार येत् शणुयात्समसरवेपापैःपमुच्यते ४९ रनिदशमेषट षरटितभः.५ राजोदाच हैबह्मन्अइुतकर्मणःरामस्य चरि
|| |संभयःओतुरच्छमि. श्रीकडवाच हैराजन्रकस्यससवादिविदौनाभवानर सरयुः आरृण्ये$वन् सन् प्रयागा |||
रग्न भरद् कचित् शजान्उयास्यत देशान् भदूणीयत् कदाभिस्समुदमध्यस्थःसनरोभ्याजरंर.डयतीरेवरतमानान्
. : ||| देशाच एवयामास तथाऋषिसुख्यानां आश्रमान् भनवनस्पतीन् इला बिग अग्नीम् भद्षयन् तथापुरुषानूरूषी श ` ` ||| गिरिगहासनिक्षिष्यशेरभपि एवदेशाय् ५ अद्वन् ९९१० ५: अग्नान् अदूषयत् तथापुरुषान् स्ीश्च् || शभयहासनिक्षिप्यशरेःपिदधे एवदेशान् अपु सती दूषयनुरेषतकं शिरिययी सत्र मः थगंरामवारुणीमरिरंषी| | ˆ
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भाषः पिते जानम् ऊ.सध्योरपासानं "असमये *असिवतयसुखडचमोष्यानरनम् ऊन असवादिभिमयरेते ङ १५ ||| यानम् ङमः बेदिभिर्तयमानं क“ उदवादिश्भि मंजथतं ङु नरनमडारम् ङूवदिजिभ्यभ्गारददतम् ङन्" इतिहास || || ||उुराणादिभृण्वंतम् ङ* हस्यकथयारसंन कापिधमेसेवमानं कापिअथोकामौसेवमानम् कु" परंपुस्पध्यायेतं ऊुबनगुर ||
|| नूशुश्रूषयतं न° कैश्चित् विथहंङुेतं ° भेजी ङुवेतम् सता संवितयतय् ङुुान् कंन्याश्चमिचाहयंतम् कु, इहिवृ | ||जामारादीन् स्वग हान्त दहं परतिनयतं ङ" तत्त दहादुनरानर्यतम् कुक देवान् यजतं ङुपूरतेयंतं ङ मृगया चरमम्
| मां अबुज्ञा देहि अहंनवलारं गाययलोकार्पयेयामि श्री भगवासुवाच ` दैबह्मन्अहधर्भस्यकर्तावक्ताअरुमरोटिताऽ्सि
` || त्लोसन् शिक्षयन् आस्थितः एलं गसिद ' ` श्री शाकरमान हरजनूनारदः एवंगवतःयोगमायामहोदयं इघा-||| ` _ ||| विस्मितः अभूत् ततःशरीरुष्णोनधमोथकामेषु सरतः नारदःनंरुष्णं स्मरन् ययो एवेवतेमानःभगवानस्त्रीणा्रेषुरेमे यष्हर|| . ` कमणि गायति श्रृणोति असुमोदतेतस्यभगवतिभक्तिभवति ९५ 'इतिदशमेएकीनससतितमः ९... ओशकडवाब |||
|| हैरजन्डषसिभासायोससश्रीरूणोः हीत कंव्यःमाथस्मियः सूनवः ङङ्ान् अशपन् तरापकषिणःबेदिन इशीरुषयंबो "||| धयतः संतः अङ्जन् त मुहररूश्पिण्यादयःस्थियःपल्यारिगनियोगान्नाभष्यन् तरुश्वीरष्णः आहयसुहूततरः धरार व $ ||| चम्यआब्यानंदय्यो अथअंभसभिस्राखावाससी परिथायसंध्योऽपास्य अनिडवागायत्रीजजाप ततःसूर्यैउपस्थायदेवर्षिपि
बतर्पथिसामिानप्य्यिन िनै सवं रषयः विष्यः सलं काः सवसा गः व ररी ननःगुीयीनूनवामंगलानिस् ओ-१ -ऋुदशानांरक्षाणां साधिकां शकः वर्हच्तुरशोखयसहस्रणित्रोदशः ‰ , = = `. - ` ~ ` ` 6 | 4. । | & 00.0.0०") अ८।८७.त०७ १८ उकण 0 (८ ध मपय ण पः त | ६ ¦
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स छावसपभूषणादििः आयानेभूषयामास ततःआाज्यंआेरभवलोक्यरस्ववणोन् अमायादिरेकोश्वकमैतोष्यग्षा || ` दरीरखकूनोबूखादीनिदलास्यं अयहीव् तात् सतः रथं आनीय प्रणम्य अयतःस्थितः तती भग वानु सायक्युद वयुः सन् ||| . `
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टेवउछरृत्तिः शिभिर्वङिःष्याधः कपोतोबहबोरा फवेण धवं गताः ` व ` हेगजस्ननःजगर्सधःआशयादि भिःतार् क्षभियासूज्ञाखाअभितयत् एतेबद्मसिगधराःराजन्यबधमःसंति त थापितेभ्यःआदमानमपििितेदसभि यति ष्याओनपिष्ण॒नाएेश्वयौत् भशितस्य बरेःकीतिः शरूयते गुरुणावारितोपिषरिःदिजरूपिणेपिष्णेमद पादान् रिचि भद्म || णकायार्थविपुरुं यशः असंपादयताक्षाबरैदेनकोयुअथः नकोफीतिनिभ्िय रुष्णासेन भीमान् आह हेविपाःकामःतिग
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||| रष्यानप्श्यापः यतःरा्ञा
. | ||मन्ये वयेपुरामरदधाः संतःखी अषिगणय्यस्थिताः तएववयं अयतवश्रणो स्पराव अतःवयेराज्यं नस्यहयामहे तस्पात् “|| तवचरणास्तंयोः अविस्मृतिःयेनस्यात् तथाउपायं समादिश रुष्णायवासुदेवायहरयेपरमाद्मने पणतङशनाशायगो |
` | ||षिंरायनमीनमः श्रफकउवाच. 'एवेराजङषिः स्तूयमानः भगयान्तान् आह शरीभगवादुबा हेभूषाःअयय
` ||| यत्देहयोनाहमो वैनीरावंणोनरको परे एतेशामदेनस्थ नान सेशिताः यूयं एतन्ज्ञालामोरकते यजंनःसंतःर्मेणभजा ` ||| क्षत् किच रेराशेऽदासीनाः संनःपयिमनः आवेश्यअतेमायास्यथ श्री शकेरवातच ` रुष्णनृपाय्रवयादिश्यततस्तेषो|| ` | ८ वि (४ | युक्त पततेषासहदेवेनवस्प्र भूषणादिकिःपूजाकारयामास एवंमुकुदेन प्रूजितागजानम्ंङ || `
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तैः तवासुयहः किंच मंदोन्नडः गृपःओेयोनपिदते तमाया मोहितः सनसंपरःअचलाः |||
# | षभूतिवःअथिसददाभक्तेः भस्त सबदिःमडजनं करतव्यमितिनिभ्ितं एतदिष्या रिच पृणभ्रामदेनउ हेधर्नपश्यामि ||| श
अगत्यह्ष्णपेशितेपरूतिष्यःजगदुनभ्ीरुषःसहरेषेनपूजितःसनपाथोष्यासयु ||| `
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भादः तःपायात् ततःमैजितारयः इ्रयस्थंगखाशंखानरप्ुः त्छलाजनाः मागधं शंतंयेमिरे युधिधिरपूणेमनोरथः पी || + माजनजनारैनाःयुधिषिरेनखास्पेअफथयन् पतभगवरसुर पितं्ञालायुधिधिरःआनंरश्चकखोयुंदय् सनु क्विननोवाच ४ ||| इतिटशमेभ्रिसस्षतितमः७२ ` भौशकउयाच. रैरजयूयुधिष्ठिरःएवरूषास्ययु भारे शुलापीतःसूतंअब्रचीत् युधिष्ठिर || || ||उवाच रैभगवम्येसनकादयःअजोक्ययुरबोपियस्यतव भासां शिरसारहनिसः खं ईशमानिनानः आज्ञा सेतत अयतपिडब नम् तथापिपरमादनःतवतेजःक्मभिःनवधतेनःदंसतेसे हेअभिततरभक्ताना अहं ममेतिलेतवेति भेदबुदिना सि करिपुनस्तवना | स्तीनिवक्तव्यय् श्रोफकउवाच रयु ारष्णारु मोटितःयुधिशिरःयञ्गोरितेवसंतादिकठेहोसपमुखान् फलि जःवभर तेचयय ||सः१भरदाजःरसमंतुःर गोतमः ४ असिर्तःवसिषुःध्व्यवनःऽकण्वःभेमेयःर रुपषमन्यितःपषिभ्वाभिनःर्ययामदेयःशसुमतिः || पजैपिनि.५कतुपष्पेरमऽप्राशरः१८गगैः१९पेशापायनःः०अथरोरस कश्यपःरधो्यःररमः २४ भागैवः %आआसुरिरध्वीति ` ||| हो्रःरमधु्छेराःरूपीरंसेनःरभरूतत्रणः३"तंथाअनयेगरोण भौष्परपादयः समैः सहपूतर्ठःबिदुरःचलारोयणाश्वतमशयु|| || ||ततःतैबाह्यणाः सणैरोगसेः वा तमयज्तेस्कगःरैमाःओआसन् ततःविरिः || बिभ्रवसंयुताःद्रादिलोफपाराःसिदगंधवपि्याधरोरगाःयनयःयक्षरक्नासिखगङ्न्रचारणाःराजानः राज पल्यश्रराजस् ||| ||||यं समीयुः ततोफलिजःमहाराजंगरजस्येनभयाजयन् ततःसोमाभिषव सिति युधिषिरं बलिजःसभ्यंश्वअरदंसपाषाषःत् ||| . . ` ||रासभासदःअपगूजाहपिृशंनःसंतःयोग्यानो बाहुल्यात् यरानाध्यगच्छन् पदासहदेवःअब्ररीत् त चुतःअयरपूजोभं ||| हतियतःयदातमरेइदंविभ्वं चम परश्वयदादमङाः पिच स्वयं अजः सम् इदिश्वंसूजसयमतिहतिचतस्प्ातूरुष्णायपरमाहणदयता एक || ||
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` ता् कषरानमोक्षयज्वदीर्येत समसवपपिःपुच्यते ५ इतिदशमेचतुभ्ससमिनमः०९ रजोवाच ` हबह्नूयुधिषठ ||
ययज्ञमरोदयंराडुयोधने मिनास्ैयुयुदिरे इनिखन्युखाद् शतम् तत्र कारणेरच्यताम् आषिरूषाच तैपितामहस्यय बो धवापरितयौयांभासम् तेवयथामहयानसाध्यसोभीमः धनाष्यक्षःफयोधनःपूजाया सहदेवः नानावस्तसाधेनङुलःयु || स्शुशूषणेऽयैनःपाद परकषारनेरुष्णः परिषेषणेदरोपदी दानेरुणैःतथासांयक्यादयः योजिताःसेकः नानाकर्मसु भरवतैतेस्प एवय || ज्समाष्यगयायांअवभथस्नपनंचकुः तरावादिजाणिनैटुःनतक्यः नसूतुःगायशःजगुःनरायह संजयाद्याः यजमान पुरःसगः
5 वैरः बरु र्व शजाक्षीभेवासंसी परिधायकविमगादीन् आंभरणाषरःआनं ततीरृपःबधुज्तातिसूपगित्रफररदीन्यूजयामास ततः
ततोयुधिधिरुट्दादीन्कृष्णंबनिवासयामास भगवानपिंसोवारहारकंपस्थाप्यस्वयंतत्रन्यवासीत् एकदादुयोधमभ्युधि
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` || | ताम् ततःसाः 3) चूतुेयुषीस् एथुगणामुयाषिलादस्परडनवस््वाभरमेवाान् ततःसमतान् आदायमदकृष्णदशनं कथंस्यात् इति || चित्य् दारकापरयये ततःसःत्रीणियुल्पानिवथानिसः वतोसा्वअपिकम्यअंयरङृणीनगृेषुमध्येयेहरे षोडशसरस्रमरिषणं| || यहाषमध्येभीगन् एङनमंहंपवेश नय शीर ून्भिविरोस्यसहसाउयाय भभ्येसषुद आरिंगिनवान् ततपि
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॥ `. ||| संमानिनःआरिगितम्च ततम्तोर्जिरुणणी परस्यरंकरीगृालायु्युरुवसनौः आदानोःवीःकथाः कथया चतुः
||| दखंसयवस्नादिनवअनिभीयसे मिरमरतयरतव् स् पिच ैव्रम्कनित् आवयोःगुरङेतरासस्यरति यतरो ध || शात् आलततज्ञाखाससारस्यप्रारअशयते चि हेष अहंरुभृधूषयायथापुष्येयंनथागृहस्यदिषः नर्चि हेब्रहमन् एङः | | ` : . ||| सयुरुदरेक्ानयनाथचोदितानौनःइतेसपयनसुतरामहारण्येविषानो सतां अकारेवातःवरपच अभून्तासू्ीपि असंगत | | दातमसादिशःजादताःतदानतोनतस्थानेन परा्ायत तरावयंमहानिरो भिः तत्नपौडिताररिशःअपिदतःअन्योव्यगहीतदस्ताः धृत् | ` ||||का्ठपाराःसतःपरिवशनि् एतदिदिलारपीउदितेसमिसायेपिनिःयरूशिषया्षमाःआरनूमःअपत्है्रक्भस्मदभः|| | ` “ ` ' ||| य्य अतिड्ःसिनाः्सच्छिषययुरुनिष्तं एतदेवकर्तयम् प पू रीरेहापणभितियत् ैदिजभरषठाःवभमनोरथाःसलाःसंतु $िषखदंसि ||| ` |||इदयुतरचभगतसारणि सतत एरवव्धानिरृतामिवयास्म्यतेकिम् िचिगुरुपसादेपैययुमानू पणौ मवति, आह्मणउवाच . द| . :, ||| दवदेवभस्म्ाभिःक्रिभसं पनं यतष्येषानःसयासहगुरोवासः अभूत् ति यस्यतवेदाख्य वपुः तस्यरेबस, अयं | (१ ९ | दणार् न रतिरशमेः त शमे अशीतितमः <° < | श्रीशःकडवाय् ] । ३ २ ] <) 3 । ४ हेगनन्स श् इ र स ःक्रषा 13] उ ९ ~ | | ९ ¦
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कुरनूस्पमयमानःसमदिजेऽवात्र . श्रापरगयादुवाच . रैबनूखयागहारमसं उपायनं फिंअनीलम् यतेः! । ञू . अण्वपिउपास्तमेपूयेवभवैत् सिचि अपक्तोपरलं भू्यपिममरतोषाय योग्येन भवति किं पतदुष्यंफरंतोयंयेोमेभक्त्यामय ध | ति तदहं भरयुपदतमश्रापिप्यतालनः५ इयुक्तोपिद्ज'रज्जयाभवाड्यु खमस तस्थेषृशुरुपसनिनदरी ततःस रूनाना? 9 नःसाक्षीभंगवान् पस्यागमनकारणंमिज्ताय अनितयत् अयं पुराभरीकामनया मोन भजत् सयानीमुपल्याःपरियनिकीषेयामोपरापः
|अतःअस्मैरेषदुरं पाः संपटःसस्यामि श्यषिभिय भगवाूदिजस्यवश्मसेडवडान् एथ काम् इदकिभिनिसर्यजहार हैससेइट |
| ममपरमथीणनंरपनीतय् ए पृथुतेदुलाःविभ्वातयानेनपैयंमि उणियदयूरुषणोः रको पुध्जि््वाटितीयाजु आदरे तार्नुरुष्ी || हस्तंजगहै हेषिश्वारन्सवेसंपस्यपृहयेएतावनाऽरे ततःस: आद्यणः य गोतेमेने तत्बोपूतेरबीरवितेसनिश्रारुष्णोनअभिवेदितः सःस्वार्यंजगाम सरुष्णात् धरनंअरध्नापिस्वयेनयानितवान् ||| कितुश्ररुष्णदशननिरतःसन्स्गरंभगच्छपूनिरतिमेबाह अहोशीरुषणस्यबरह्मण्यतोभयमयारण यतः रुस्पीररिधिन्न- “ . || नाभावतादरिद्रतमोधं भण्डिरूअरो अर पाषीयादुङशीनिदासःकनथपितेनबाहृष्यंअरंभरिपितिच सवपयेके अहनिबासितःअ ` : ` , ||| बारव्यजनेनरुङ्िण्या बीजिनः त थारेवेनपादसंबाहनादिश्श्रूषयापूनितःतनः स्वस्य व्या दाने कारणकस्पयाा अधनः || | ` ` | ||अयंधनंपाप्यमोन संपत् इतिरैलोः मोधनेभूरिनाददयू इतिसेषितयन् समूदिजः निजगृहोतिरं पासःरीरशांगरयर पिमानः स || . . ||| ईैनोडपम् रिषि्ोपवमोयामे पैशितम् तथा स्वलं रुत स्वपुरुषेसष्टम् एं पूतगहं खा किभिदकस्यचास्थानक्थतप् ||
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स्यभेजीरास्यं ममजअनिजन्यनिस्यात् थातर्क्तसंगश्च किव नौमरोडवमिनेपश्यन्भक्तयसंपरोर ||
||जाययासह विषयानु सुजे एवंसःविपर-पकतैःपयजिते भगवते रष्वातस्यानेनगताहकारःसयत डम लेभे एत्पथुकौ पास्यान शुः || रमिद्शमेएफशीतितंमः १ श्रीशकउवाच ` . हेराजय् एकरांडयरव
८ ८ दशके किंच कर्मणा अस्पशोऽपिरा्भःयत्रलोकसंय हार्थरजे . ||||ुःअनिरुदौदरफायां त तेयादबाचतुरगसैन्यै णा रग
५ ८ स्मिताःबभूषुःततःरापरूष्णाभ्यो पूजिताम्ैरजानः इष्णीन् युर पशं फः अहोभोजपतेयृण मध्ययूयं सफलजन्मानः | अ
` "| | चिभूतःसन् युष्मान् फखपरोवभूव - क श्री कक्डवाच : -नेदयमयदूत्पासान् तालागोपिङतः सर् नदिदक्षया सयं अगमत् | ` . || र्णयःनेनेरदश्वागारं परिषस् जिर नती मसुदेकःसं भीतःसन् नानृष्ी् परिष्ठज्यकंसरूतान् $ शन्तथागौकुरेयुमन्यास ||| ` ˆ ||उस्मरनभेमरिद्धलोब भूम तनरुष्णरामोपितरीप्रतिपरिषज्यपेम्णासाशरुकंीसंनी दिव ननोचतुःतरायशो दानंदीरामेह- ` || ||्च्रउसंगासनं आरोप्य हुभ्यां आरिग्यविरह शोकाम् विजहुः पतःरोहिणीदैबच यशोद परिष्वज्यत त्तमत्रस्मरल द. ` ` `| ||उत्वतुः हेय शरवो मैरी कादिस्यरेत् यतःदैदेमिएतीरमरूणोयुवयीः प्यस्तीसनी पोषणपालनादि षाप्यञषतुः ` शीककड || || `
। काटः जकैकयपदकनीन् आनेररलान् अन्योश्वसृषान् नेदाशन्गोषार् गौषीश्वरदशः ननसेभम्योन्पसंदशेन ह्रंहसागारं आरि २५ ||
ग्यमुदेययुः त थास्मियश्चअम्योन्येवीश्ययुदिताःससःअभ्भिरेभिरे ततमतेयादयाः इडाम् अभिवाद्य, अभिबादिनासतः || कुशलं प्ष्वाभिथःङष्णङथाश्चदुःततःपृथा्रावृख सा दीन् युकुर्वगीक््यमिथःसपेमगीखीभिः शोकान्जही ङखुवाच हेश्यातः अरंअपणं मनोरथं आत्यानं मन्ये यतःआपसु महमगीनारुस्मरय क्रिचयस्यरैवंनावुक्रंतेखुद्वेनातुस्परंति रषु ||| || देवडवाच ` हैअबअस्पानूमासूयेथाःयनःकेसेनतापिताः वर्यरिशंदिशंयाताः सं पदेव पुनः व्वेनस्थां पताः. श्रीशुक्वा || च हैरजनूयदुभिरभिताःयषाःरष्णदशेनेननिर्तो आसन् ततःकीरपोडबादयःराजानःरूप्णस्यभौनिकेनं पपुर्शकष्यमि-
सरुतश्ररुष्ण पश्यथ ङ्ब यस्यभरुषणस्यीकतिः पादोदके गंगागक्यस्पो वेद श्विन्वेषनानि शिनतयेषरोक्रगुहस्यं विष्णुः | `
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हक हैरजनृततीगेष्यःभिरार्रूणोरपलभ्य दिषु पश्चरूने श्पयःससयः रभिः तंरटिरुयआलिंग्यचताः सबा तरादह्य-|| .
1 00-0.6001165) 51171 ।<.5.028/1/1817 1101811811.0\/611716111 [3161161 | 10181 \/2/2189|. 002५ 0\/ 6809011 4
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` ` ||| वेभ्ीरुष्णोजमेुस्तवसयारवकोरयस्नियःभिथःसमेवयगोविरदकथाअगणन् तौेव्णयामिश्ण रपयुवाच दषः ` ||| भिहेभदेरेजामपतिरैसयेरसयमामिरेकरिदिरेमि्विरेोहिणि हैरश्यणे देरुष्णपल्यःभगवान् बभ्यथारपयेभेतरनः ||
` || सुकण्युवचः हैरणोैयायमसंपादयितंउयतककेषरनसुससनेषागूभिपदरलारूणःमोनिने पचर | | `
. . ||| णःममअचैनायभसु शयपामोवाच यपेपित्ारिसेदयंशपरिहंकगजोगलास्यमनरकभानीयमरिनेदतवा ||| ५. नू तकतःमयितासवापरेन पीनः सरश्रारष्णायम रयः ता -जोब्बद्युवाच मरिनाअसुरीकूषणानिजनाथगमभितिभन्ता| || ` . . “||| य २७ दिनानि अघुनायुष्यतुं ततः असो रामएपेतितेज्ञालापारौपगरडय मणिनासहमोनस समपितवान् अतःजहषष्य||| ||| ास्यस्मि . कारिद्ुवांच. खपादस्यशेना श्यातपश्चरती म तालाअयुभेनससस्ययःप्रणिअयरहच् अहतस्य ||| ` ` `
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|| सर ष्गबान् धतुगरदायसज्यं रुलातय्र बाणस
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पूजयत् आङ्ूष्णाय आयुधानिददीरषाः अयीव्यं ९६ 1 रमस्य गहदुसिकः भूवि तः है || ||क्िक्षितिजयेभोमेन भतानी राज्ञाकन्याःनःरूदाः इति ज्ञासाङूष्णमीमंहतानःनियच्य आसकामौ पिरयाबहत् । | (4 कितु अस्यश्चीमसाद्रजः मूता वोद कमया मरै यतमगोपिक्ाःयुङिदःगावगोपाश्चमहास
पाट्स्यशं ब ठति ५९ ङमिदशमेव्यशौतितसः<५ श्रीरृकडवाच ` . हैरजसततःपथागांधाशदीपरीरभद्रतथा |
४. ||रजयल्यःगप्यथ्वश्ररुषणेनासा लेहासुबेधंश्ुलाविस्पयंचङुःरतिस्मीभिःस्मीषुदृभिःयृषुसं भाव्यमणेषुससुरूष्णर्
|| मदिरक्षयायुनयः तत्रभायंयुःकैवव्यासः नाररः्यवनःरेवल असितः शतान् भरदराजः गोतः रामः वभिधम्गाठ वभर
` ` ||| उस्यः कश्यपःअज्निःमाकेडयः हदस्पतिःदितःभितःएकनःअद्यपु्ा अंगिराःभगस्यः याज्ञवस्क्यःवामदेवादयश्च एतास् || |
। नशा > "9.1 ९ 8 ५. < ९9 + 34 [> + ~ ^ नश 9 # । छं बः = १ १५८ क कर ~ [8 9 (23 ~त १५ श 4 ॥ > त 1. (4 २ ९ छ 4 + १, ~ न -14- -~1111119 | ~" १,२८..११०..२ 1 त १० 4 > । ८ ६ प -4* ( > 8 = 8 1 3 \/ 9.54 च 1, 0 क 3 ४९१" 6 अ) फक ++ 1 १11 ः {4 1 ५.0 ९ ध ((-0.6001165/ 5111 (९.3.78/108 | 10181181 ©0\/61111161)1 [51116 [10181 81811851. [1411260 \/ 66810011 1... (८. 1 र द ¢ # +? ५ [1 न 4. ` ## (वि ~ . च् ३ ६ = # ४ +^ 3 5३१ ॥ भन न द. + क : कैज ॥ ङ्ग हभ १...“ चै च" त "क्क ^ र । छ: द ° क के १५ च + % नि १ ,। भ व वुदि + ` # ` ज नौ ९६० - श „ ध
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||| यो चष्णसराजानभ्महष्यश्वयसतुपाणयःससयज्ञशारो र पाजः नस मूगादयोनिट्ः नरदयोनरतुःसृतादयंु वुःस
वृरदेवडवान्व = च +
|| हेबसुरेवक्मणाकमिहीरः एषःनिरूपितःसएवाहुःमरौःविष्ुडयायनेन् यज्ञरनःवितेषणासनेस् गृहोचित भगेःदार || ||
“ ||| नभ्यज्ञाध्ययनसुरैःताभिचरणानिअनपारूयदैहं यजन् अधःपपेत् संतु्षिपित्नौः भरणाय ुकताऽसि अथय ॥| |-व्गृहाप्भ्ज हैवसुदेबभयंफमःअविशडवित्तानो खंतुरूताथं एवस्यात् सगवास्ुवयोःषुत्रतागतः ओश्कडबाच
|| एवतेषोवचनश्चलावसुदेवःनान्यणम्यङलिजोषये नदमजसयभस्ियहेषेमसैःपरवं अयाजयन् एवेयज्द कायार || (
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` || गेधव्येःजयुःनतःफसिजःसपलीरे वसुदेवं अश्यषिचन् तरायसुदेवःस्मीभिःसदशकभेतथाससदस्याः भविः पिरजुःतय : ||||रापकष्णोखषु्दारै रेजतुः भथवसुदेवःकःविग्भ्योरक्षिणाः गो भूकन्याश्वदये तनःपलीसयागोचरिला यजमानयुर्स्| `. ` ||| ससैरमङ्करेखानंचकुःनौवसुरेवःअरंकारषासांसिवंदिभ्यःदानुततःआन्वप्यःअन्नेन संतप्य ततःसुतदारसदहिनान्बधू ||| चबिदभोदीन्रज्ञसदस्यलिकङरगणावूदधूतपितृ रणान् अपूजयत् ततस्तशवारु्णंभरुजञव्यभययुःततः धृतरा ||
1 = ++ क -् क | ४ ८ १ त । # (9 की र न । (-0.041165/ [1 ॥९.3.2811/181 | 10181181) 06111161 [15116 [ 10181 \/8/81881. [21011260 0\/ 66810011 ५. त: | > त ॥ | ¢ ॥ | = । ~ 4 ् ~ ) 4 1 1
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|| चद्रस्यकातिःअग्नेस्तेजः अरस्य प्रभाक पिद्यतां स्फुरणं पतां स्थेयम् भूमेःगंःअपारसम्बायोःगतिःएषातेब शक्तिः ङि रस्तं फिंच हैवि भो एते्रयोगणारगद्तयश्चप्रेजदयणिखयिमाययाङयिताःसंनि अन पस्ततस्तेसयिनंसंति एवेतवसशषं
|| [गिं अबुध्वदेहा्नमानेनरतै र्मेभि संसरि रिव अयंनमःयच्च्छयामरुष्यदेर पाप्ययःसाथेप्मननस्यवयोदथागतम् || १ 4 खंसेहयाशैः धासि स्वि युयोमप्रसफतोन रितु साक्षायथामपुर्षेभ्वेस्तःअतःतेषरार ||
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||| तप=४. ओककरवाचं -रैराजमूरएकयसरेकःपु्योप्ायसूचरंकपिवचःशलातदीरयेजातपिभ्वासःसनूमाधै | || रमरुष्णोसरूखय अश्यभाषत हैरुष्णहैरामयुयापथानपुरुषश्वरोजाने किच एतदिज्वसेबिपषि केच पाणार्दनायाः श्तयः
॥ कै ॐ ॥ प. र + ह नो णि, + ^ » = न = क्कच त = "= जभ, र
च दिशो अवकाशःसमेष इदियाणो विषयगप्रका शन शक्तिः सं उुदःव्यवसायशक्तिःखं भूतेष्ियदेदतानांरारणंिषिधोऽ्टका|| || `
१ शरण ्साि अतःपरदेरे आदुरि लयिषुमबुदधिश्मास्त. . आफकरवाच. रेरजरभारूष्णःस्यंपितुगौ-|| `
भाद क्यशुलातेमाह शरोभगवादवाचं ४ ` हनाननःपुत्रानूउदिश्ययातलयामःमिर्पितःएतसतैवकयुथैमन्यामरे | , ` ॐ ||| अअसर एतेसवेएवंचरयरविभबदसेनअपेषणीयम् श्रीफृकउवाच -एवयुकतसदेकपिन्टनानाधीः सन्
अभून् अथरेवकीआस पुत्र्या रामरूषणाध्या रोप आनीतं लाङसमिदिसिनान् ख पुतार्स्परंतीसतीनी आह्
जेः ऋः
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` “ |||मलसादेनसदतियास्येति इुन्कातान् आदाययुनःशरबतीरय मातुः पाच भयच्छताम् ततौदवकीतान् पुत्राचदघा अ ||| ^| कंभरोप्य परिष्वज्यपीतासतीस्तनंभपाययत् पतस्सैतस्याः अपृतमयं पयःपीसानारायणागस्यशेमदेगरुष्ध ज्ञानाः संतःगो || || विदेरेवकीं वसुदेवं रामेदनमस्कयस्वभूतानो पश्यतो सतादेवलोकंययुः तत्रछ्ादेवरूष्णस्य मायामेने हैरजस् एवविधा ||| निवीयोणिअनंतस्यअनेतानिसंति सतउवाच इरदव्यासपु्ेणवंणितं मुरारे चस्तिंयःश्णोतिश्रावय द्यसः पगवतिङते
` ||| चित्तः सनूतमंयाति ५९. उतिदशमेपचाशोनितमः०५ राजोवाच ईैबह्मर्अजुनःरामरूष्णयोस्वसारं सु ||| ग्रउपयेभे ए ` . श्रीकृकउवाः अरुनःनीथंयाआया पृथ्वी प्यर् पभासंगवेःतजरामः सभदादुया धनाय ~ || रस्यति अपरेवरदेवादयोनेनि अभृणोन् वासुभद्र स््छःअयुनःभिरडीयतिभूला रर सगाप् तथरह्मरकायाबाधि कान् मां , , ||| सानूउवास तकएकराअजानतारमेणतंयतिगदं आनीयश्रदयापरिशषभष्यं भयेनःबुसुजे सरासौऽयनः तमह नीङन्य (| बीक्षयतस्यां भावकषुष्यंमनोदये सापितंवी्यहसंतीसतीतंचकमे ततोऽन हयं भवसरंपय्सुःकामेनत्मचितमसवशः “ , ||नरेपे ततःएक्रादेवयानायारथ स्थतां अजुनःपिमोःरष्णस्यचायुमतेनरथस्थः सन् धसुरादाग् च पआव्रण
म स्यच थ वरण ङतो पयन् ||| ` ||| बिग्रच्यस्व भागसर बजार न्छलाक्षुभितोरामःकूष्णेनगृहतपाद्ःअन्व शाम्यत ततोबरम्बरबध्वीः गरहाधनोपस्करे-|| ~ “ ˆ ||| धरथाश्चनरयोषित्तःपारिबहीणिपराहिणोन् ` शी शकेउवाच . हेराजसभ्ीरणस्यसयाश्वतदेबरपितिपःआसीत्स्ः||| ¢“. ॥ | गूहस्थाश्रमरीशोनम्सर्भिथिलायोरवास सःरेवासरध्यैनसृपुःसर् यथोरिताः क्रियाः कै तथाब दुखश्वरतिभुवः तञ
जै श | | | ५ ॐ ५ ~ ` ॥ । 3 ५ { एतीरउभ्रावपि अच्य॒तभ्रियी ॥ 04 तयोः 4 क चृसन्नोभा प + च वार् ५ [ऋ रथआसुल्य अन, = ४ युभिभ्ि ~ सहषिरेहर् च प्युथीतेच भ्रषुय ट ४ च $ - 9 ६ + 4) ५ „१ । । । ॥ "^ । ४ + 17:14 4 आसीत् ¶ 4 ५१ ए % ती, ङ । ॥ # ^ । > : | १ ५ 1.4 ; ८... = 9; > ८ र ४. त ^ ॥। ‡ पा [ति क त पि |+ 0 ६५ @ ,, ` ~ \, } । अत " ॥ 0 क क - { न ¢ # १ 4 1 ५ ५ त त षै च । 4 + [1] क ५५ 1 ॥ । 1 मे १ ॥ 4 ष्ट्र- ५ ५ प 4 0 1 9 हि, ॥ |. र. त क च -: ५ „ॐ 4 । । ॥ = 4 । १" ऋ ह ` नि 34 + # / [1 2 ४ + ॥ 4 \ छ; १ { > म त क ~ ॐ १ ४०११ त, ने ४ ४ च 4 + , । त , ह त प # १ ॥# च र # । । च र १, ' ¢ दं † "च १ धः 08 ' च 4 ॥ ५१ \ म ध व्र, + क । ` त 2 + ए. व # + ¦ १. - ४ श ्ः | ( 1 वि > ५ ५ - । क 0 < न + । क ‡ (६० चः क #+ ` ~ ब ध 4 त क ^~ क, ४1 क । ५ ठ 20 ४ ४ त ५ - = (च 6 ने च न द ष, 4 # । ५५ # [चङ भ | १ के भिः ॥ । प ५ ` ~ भे . ६ (^) ~ # # 1 ९१ 9.># ह) 48 + ४१ 8 1. ५ $ ५५ न प = ष = (4.1; ` ^ १7 (1 । च + | ` 3 8-# ` २ त ॥ ॥ चन कैः पि =. ‰ न $ र, प ३ ५ ॥ ५ * थ । #॥ ~. (> ५ श्र +* ~ 1 + ¦ ” ५ द्द 4 यि ++ ॥। 1 तक = । १,.५ ॥ ~ „च क "अ ¬ [। बै ४ 1 व त १. +. ~ ह # “ 6 १1. ~^ १. 4, , =+ क; ५ "9 "भ ९.43 #, (4 ् हि, न्त्रै ४ ~ ५ | " नि ५ न ~ ् # = ६ #) त ्
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येबरशयं पा्ःरनिन रितु यदाशक्तिभिः ददे विश्दसंसातस्थिन्खसतयाप्रिष्टः तरेवपासोसि रित खंहदिस्थोपिकमं्िष सेतसाअविदूरस्थोसि सःखनःपृव्यान् शधि. . आशरुञवाः हरजनृषगषास्तछलापाणिनापणिगरहीला आई ओरी
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ट्वामरेवःअभिव्यासःभागेवरमःशक.असितं अरुणिःरस्यतिःकण्कतेयः-यवनाटयः एवमाटिषुनिभिः स् शं शररः षं ुखापीराःजानपराःसायेदरताःऽपतस्थुःततःआनतोदिरेशयकिन्योरनायेः रमिः तगु खकमरं पुः सः रथो पितेषय अभयंयच्छन् ैःगीतेस्वयशःभृण्यमूमिरेहाय्ययो नतम्ेषीराजानपदाःपासं अयुते आक्यं पसुज्जष्टुः तमःतेउत्मभ्यै| |
देवश्वयुगपतष्जिःसर र्णं आतिथ्येननिमंअयेनास् ततः भगवान् नन् अगीरुयहयोःषरियमिकीषयार पास्याअयकषित|| | ||| सन्उभयोगहं पामि शत् ततीजनकःगृहागतार् तान् सहरष्णान् सुनीन्नखातदघीन् पक्षास्यतरपः सङुटवमूध्ाबहनगध||
| मास्यारिभ्भिःनान्सेपूज्य अंकगतीपायैसंमरेयन् उवा . राजोवाच है पगवसूखंभूतानां आससि अनः खच्चरणा| | भोजे रयु पुमाय्विसजेत् यः भगवान् यदुवंशेअवनीर्ययशः वितेने तस्मरूष्णायतुष्यनपः रिच है भूमन् स॒निभिःसहकषि|||| . | चिष्धिलानिनःगहाच्रषिखापादरजसानिमेः कुरु पुनीहि इतिराज्ञाउपामभितःभगवास्पीरणाक्स्याणङुरच्डवास तथाश्रुन | ||| देवोपिखगृहान् मुनिभिःसहमापंअब्युतंनलासंदरष्ट-सन् यासो धुन्वसूननने तत्ःतानूदेणपीद्िषुरपवेश्यतदभीनच् प्ता || || | | ल्यतदंभसाआल्याने खगरान्वयंस्मापयाकरै नतः तान् संपूज्यतेषासमीपेसभायःरपपिषः ससूउवाच दैभगवन् अस्मान् |||
क हिता 0 [ > च छौ कको ककत ` र अक्के ना भ नत क जयोक हि. ¶ फेल )
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प्ेषिवेन तस्मान् एनायजहाषीन् म्छडया अचय तेनाहं अविनोस्मि , भाशकडकार इथेषशचुणाआरिष तदेव | ||ङष्णान्हिजान् आराष्यशुतदेवःभधिरुश्वसङपि थाप त ्गीऽपदिर
द्शमेषरशौमितमः<५ परक्षिट्वाच ` पूब।ष्यायापभ 1२" | त वैदानोबद्यपरखंभथरमामेमन्वामःराजापृच्छति पथ! भवात ेरहमनअनिररथ" दपीरियमन 9 (. णिरुणैवर्तमानाःश्ुतयःकथचरति 0 है जसानानयु १५.९१ यभिद्येखुड। र पतिारयेति त य मरनाटिशिश्परपरागतलान्मसदेसीयुकतइ्र
॥ १ स्रपरमाुयान् भबर्थिददिहासमाह हेरजन् भे
उप्िकनिःपरीतेस्थितेनारयणंरटमेवपप्रच्छ तप्रनारायणःकरषाणाश्ण्यत सता श्रीसारायणरवा (गजनसोकेतञरस्थ ५
ब्यवारःपर्तःत्रायमसूतूमश्नः संमोयमदु श्च्छसि त्रसवेसन- || . आरिमिस्कस्पांभपिएवंभवक्तारं खा अनये प्यच्छुः सनंदनरजनः हे्सयःइद खसं पररय सं यानेरईभ्बरप्रलयंपेयथमनि ८ श्वासभूताः शुतयःतसनिपाद्कयाक्यै अदोधयामासुःयथाशयानम्षबदिः|| _ `
क. ©©-0.01165)/ 8111 ।९.3.281118 | 10181181 © † जालं । 1981 \/ 0002९ ०४च्जकपनी) । `
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|| णाय गद्यतयणाअषिघाना शाय यतःसंपापसमसपेष्पयासि नरजीबाएवता किनहन्युःअनयाह नेषोखगेबोनयोमीसवैश्च्छ्|| || दोधरूअतोननेसतेबाः नसुअहयेरअबियादतेयनकिपिमाणमिनिचेत् तरिभहमेरषयाणंनतुएवं शूतेमथिकथंवेदपद किः आहकराचित् सृश्यादिस्येभायया्ीडतेवविदःपरतिपादयति १नसुशुषिभिःइदण्यादयःयतियादते कथेमाभेवेखच्यते ||| तत्राह हैडशएतप्उ्परुष्यंरग्रिसर्वैबह्मखमेदेति अबशैषतयाजार्नपि ङतः यतःसर्वस्यरय्तिखयीस्तम्वरिङब्रह्मणपपि|| || कृारिखेनपिवतोधिषानसेनभरिकाराचयथाघररेःउसतिरये पृटितहत् अतौषंबाः खय्येवसनोवसभयोःवाखयौभिधाने रत ||| , ||| व्तःअत्रदृणतःयथासृणाकुबापिक्षिसामिपदनि सवि अद्तानिन भर्वति वथायङिमपिषिरारजातवदगोवेदमयरमार्थशूंवा || | || मखप्रतिपादयति किंच हैतरिरणमायाशूगीनतकषिदेकिनः तवस्वेजन णयनाशरैतं कीर्तिसुधाधिमिषेव्यपापानिज्हःयरा- लरथामरेण पापयागः तदाकषिसक्तवयं यैनदभरवंडानंगसु भरं खस्पंभेवते मेदुःखाभियजतीति २ अथगुकौसोभयविधस् `. - || | जनहीनानजिदाति हैरशनरःयस्तिपक्ताःभवंति तर्हिसफरजीषिनाःस्युःअन्यथापस्मारदथान्वासाः नुमेव कम्रादिकङ || || . ` . ||| भस्येवनेयाह यतःमहगदयःयस्थासु पदेशेन दीर्यैषावयइ्दसमधिव्यिर्सं सुषवेः तत्रव कोशार् अन्मयादीन्यविश्य ||| ` . . . ||| व्तदाकारःसव् यःवेतयतेसः पुरुपिधः वम् नडुबिहनस्यङूथंततेदङारतातवाह् एष्वन्वषयारिषुतवअन्वयाच् एवतहि-|| ` | पृच्छलैनाक्तःसलग् तथापि असंगंखहानिरेवतवराह स्थूरसश्यानम- || २ `
|
. ||| सखयलभसंगलवकथंनआाह अनभयारिषुशश्वरमः पुच्छः क ५ | यिः व्यतिरिक्ततत् साक्षिभूतं अबाध्यततखप् तहि[द्य्
|||. भो उस्पस्य अन्नमयादेःदिथविधाआकुरो स्वसः, `
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सततिनीमसपा शी तितमोऽध्यायः<७
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तंअमिवादयामास श्रीफवासुषाय -दैदकलंद्रं भागतःअतः्रातोसि तस्यपिक्षणविश्रस्यताम् किंच तवयत्निध्िर्तषू । |
शाभोर्ववःअस्यंसेस्यात् मर्दिएनंनरि दयारिभगवहाग्थेमाहितःसःकुमतिःखशिरसिदसंयधात् परेवभिनशिराःसनूअ|| | |
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रिष्यउवाच हेकुररि ङ्ष्णस्वपतिसति वुनिदभः कुवे तीसतीयाभद्िरुप।पे एतत्तबअदुचिते सि्हेसमवाकिसेअरस्बभुः |
|| |सनानेतरमिमात्यरोरवीषि अतम्वयभिदभच्युतपादसणा स्रुदरेण बोडे रच्छभि ङम् भोऽरगपभरब्धनिदरःसनुनरकोशसि अः ||अस्माभिःपापांदशां वमप्रिपापोधिर अहोकशहैरयलं यक््णागृहीतः अतएवक्षणःसमूसपक्िरणेतमःन क्षिणोषि तूकिरुष्णग
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“| |जभिअरोएतत् पसगःदुःखरोस्तिहैकोकषिरलंरूणस्यशब्यरवशब्यान् भाषसे अेभेपियं अयक्षिकरवाणि हेपवेतलगचरपि| | , . `
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. ||स दरास्थ रैहसतयस्वागतम् अभास्यताम् पयःपिव ररः कथाब्रूहि खारुष्णदूतपिदामसः संस्यासे रे शोद्रस्ा्रहसिर |
40|| सेनस्य जोरि आवयाः भायि (|
¢ || |परमोगनिङेभिरे यः शुतेमामोपिस्ीणाय कषेति स परगवान् आलानं पश्यतीनामनःकृषेतीतिर्वक्तवयय् किंच याःस्पियःजग्
. ||| इरुपयंचरद् तासोनपययते एवं भगवादषेोकतं यग नेर् रथम कामाना परभिति अदश यत् एवगस्थाभर
वासर
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` || ||ह्ण्याश्वनजक्तिर हेराजन् यदुं शप्रसूलानो
` ||| शखः शशापितानिच भन तनस हेराजन् “ || ||आसतेक्िचिहैराजन्देबासरयुरैयेगृताशेव्याःतेमरुष्यैषरयन्नाः संतः पजा'वबाधिरे तषोनियहायहरिणापोक्ताः ` |||ऽजवतीणोःेषोपराधिकंशतंङुलानि आसनुतेषागध्ययभम भगवानासीत् यदवापतशष्यं परमासानं निरः 2 ` | ||यरूष्णकीर्तिस्पंनी थात् गेगार्यतीर्थअस्यं क एवं भूतस्यक्षितिभारहरणादिनिमिभषृ रजस् सःश्रोरुणःस्थिर|| ||| षर रनिनभःसन्नयति एवं ूतस्यशरीरुणास्यषक्षिइच्छमूतेरमौणिशरयात् यतःसर्यःीरुष्णकथाश्रयणङीतेनवित|| ` . ||| जतम एते ५२ इतिश्रीभरागसतेमहायुराणेदशबस्कयेनवतितसौऽध्यायः ९ . ७, . ४, समापो ९५.
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